पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६०

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चिनशाना . जिस व्यक्ति ने गृहस्थी की प्रशंसा की थी वह बोला-एक मज़ा है, तो एक तकलीप ( तकलीफ़ ) मी है। अब अाज ताप भरे को लकड़ी मिल गई है न, इसी से इस बखत मजे में हो; जो लकड़ीन होती तो हुलिया विगढ़ जाती, वव फिर गिरस्ती याद अाती । गिरस्ती को कोई पंथ पा सकता है ? हमें तुम्हें जोई पावा है, धुतकार देता है, गाली दे देता है। अभी पानी बरसने लगे, तो यही कहो कि एक कच्ची झोपड़ी तक होती तो अच्छा था। तोसरे व्यक्ति ने कहा--गिरस्ती में भी ससुर सैकड़ों दुख-दर्द लगे रहते हैं । राजा महाराजा लोगों की बात नाने दो-गरीब श्रादमी को गिरस्ती में भी दुःख है। हम तुम तो भीख मांगकर भी पेट भर सकते हैं पर गिरस्त अदिमी भूखों मरा करते हैं । गृहस्थी के पोपक ने कहा-भूखों मरते हैं वह जो मेहनत-मजूरी नहीं करते। चौथा व्यक्ति बोला-तो काहे भीख माँगते हो? जानो मेहनत- मजूरी करो, गिरस्तासरम बनो? गृहस्थी के पक्षपाती ने कहा-भैया, गिरस्तासरम का सुत्र भी यहुत भोगा। अब क्या करें, कोई आगे न पीछे, अपने पेट भरे को माँग खाते हैं। (रामलाल की ओर संकेत करके) इन्हें गिरस्तासरम बनना चाहिए ! एक विटिया है, उसे पालना-पोसना है, व्याह करना है। रामलाल अभी तक सिर मुकाए. बैठा लोगों की बातचीत चुपचाप सुन रहा था । उपर्युक्त वाक्य सुनकर उसने सिर उठाया और बोला-भैया, इस बिटिया खातिर ही मैंने यह मिच्छाविरत (भिक्षावृत्ति) लिया है। तीसरे व्यक्ति ने पाश्चर्य से पूछा-यह तो तुम उलटी बात कहते हो। बिटिया खातिर तो तुम्हें मेहनत-मजूरी करनी चाहिए । का को नरकी सयानी होगी, तो उसका व्याह कहाँ से करोगे ?