पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६३

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परिणाम रामलाल इसी प्रकार की बातें सोचता रहा । उसे इस बात पर श्राश्चर्य होता था कि श्राज तक उसका ध्यान स्वयं इस महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर क्यों प्राकर्पित नहीं हुआ । उसे भिक्षुक को पीटने का पश्चात्ताप भी हुश्रा । उसने सोचा कि "भिचुक ने यह बात कही कि तुझे उसका कृतज्ञ होना चाहिए था, इसके प्रतिकूल तूने उसे हानि पहुँचाई । इससे बढ़कर कायरता, इससे बढ़कर कृतघ्नता और क्या हो सकती है ?" रामलाल ने इसी प्रकार की चिंताधों में रात व्यतीत कर दी। प्रातःकाल होते ही पहले वह नित्य-क्रिया से निवृत्त हुआ, तत्पश्चात् वह अपने साथ के भिक्षु को से बोला-भैया, हमारा फहा-सुना माफ़ करना । आज हम तुम सबसे विदा होते हैं। उसके साथियों ने उससे पूछा-कहाँ जाते हो? रामलाल-जहाँ भाग्य ले जायगा। रामलाल ने जिस भितुक को पीटा था उसके पास जाकर वह बोला-भैया, रात गुस्से में हमने तुम्हें मारा, इसके लिये हमें बढ़ा पछतावा है । भैया हमारा कसूर माफ कर देना | तुमने हमें वह सीख दी है जो आज तक हमारे बड़े-से-बड़े हितू ने भी न दी थी। तुम्हारा यह एहसान हम जनम-भर नहीं भूलेंगे। भगवान् तुम्हारा भला करे। यह कहकर रामलाल कन्या का हाथ पकड़कर एक ओर चल दिया। उसके साथी श्रवार होकर उसकी ओर देखते रह गएं । (२.) उपयुक्त घटना हुए पाठ वर्ष व्यतीत हो गए। कलकत्ते के एक लक्षाधीश सेठ अपने गगनचुंबी भवन के एक सुंदर सजे हुए कमरे में बैठे हुए हैं । उनके पास ही तीन-चार प्रादमी शिष्टता-पूर्वक बैठे उनसे वातें कर रहे हैं। उसी समय उनके एक दास ने पाकर कहा-सरकार, पंडितजी श्राए हैं। . .