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पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६४

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चित्रशाला सेठ ने पूछा-कहाँ है? नौकर ने उत्तर दिया-आफिस में बैठे हैं। सेठजी-यहीं भेज दो। नौकर चला गया । थोड़ी देर पश्चात् एक सजन, जिनकी वयस ५० के लगभग होगी और जो वेष-भूपा से कोई धनी तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति जान पड़ते थे, कमरे के भीतर आए। सेठजी उन्हें देखते ही मुसकिराकर बोले-पाइए पंडितजी, सब प्रानंद- मंगल? पंडितजी ने कहा-सव श्रापकी दया है। सेठजी-कहिए, व्याह की सव तैयारी हो गई ? पंडित-हाँ, तैयारी सो सब हो गई और हो रही है। सेठजी-किस मिती को ब्याह है ? पंडितजी-क्या आपको निमंत्रण पत्र नहीं मिला? सेठजी -निमंत्रण-पत्र तो मिल गया, पढ़ा भी था; पर मिती याद नहीं रही। पंडितजी-कहीं ऐपे ही वारात में सम्मिलित होना न भूल जिाइएगा। सेठजी हसकर बोले- नहीं जी, मला ऐसा हो सकता है ? मैं तो सबसे पहले चलूँगा । नाली चलना ही, नहीं मेरे लायन कोई सेवा होगी, तो वह भी करूंगा। पंडितजी-यह सब पापका अनुग्रह है, आप ही योग न देंगे, तो फिर योग कौन देगा । विवाह मात्र सुदी तीज को है सेठजी-तो इस हिसाब से अभी वीस दिन बाकी हैं। पंडित -हाँ और क्या । सेठजी-बारात कहाँ नायगी? पंडितजी-हेरिसन रोड जायगी।