पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/७२

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चियशाला . रामनाज के मुख पर कुछ मुसकिराहट आ गई । उसने पूछा- भैया, तुम्हारा नाम क्या है ? वृद्ध ने कहा-हमारा नाम तो छेदी है। रामनाज चौंक पड़ा । यह देदी वही व्यक्ति या जिसको रामजान ने पीटा था। रामलाल ने कहा-भैया वेदी, जरा अलग पा जामो, तो तुमसे कुछ पूरें। वृद्ध छेदी यह कहता हुअा कि "पुलिस के श्रादमी हो क्या?" राम- ताल के पास प्राया। रामलाल टसे अलग ले गया और कुछ क्षण तक टसले धीरे-धीरे बातें करता रहा। बीच में एक बार छेत्री ने बहुत चौंककर राम- लाल को सिर से पैर तक देखा और अंधकार को भेदकर अपनी इष्टि द्वारा उसे पहचानने की चेष्टा की। थोड़ी देर पश्चात् छेदी लौटा और अपने सायवानों से चोला- भैया, हम अभी थोड़ी देर में पाते हैं। यह कहकर वह रामलाल के साथ हो लिया। . . रामलाल तया- छेदी होटल के कमरे में बैठे हुए हैं। रामनाक कह रहा था-"भैया, मैं तुम्हें अपनी कहानी कहाँ तक सुनाऊँ पर योड़े में जो कुछ कहा जा सकता है, वह कहता हूँ । उस दिन रात को तुम्हारी बातें पहले तो मुझे बड़ी बुरी नगीं और मैंने गुस्से में पीरा; पर जब मैंने तुम्हारी बात पर गौर किया, तो मुझे मालूम हुना कि बो.कुछ तुमने कहा वह बिलकुल ठीक है । मैं रात-मर गुमारी बातों पर विचार करता रहा । उसका परिणाम यह दुना कि मेरे हृदय में एक भयानक हबचत उत्पन्न हो गई। मैंने कसम बाबी कि जैसे बनेगा मैं भनोपर्जन करके छोरेगा । तुम लोगों से बिदा