पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/७९

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संतोप-धन 99 सब कष्ट भूल जाते थे। इस समय भी लल्लू के आ जाने से वह अपनी दरिद्रावस्था को भूल गए। लल्लू के थाने के थोड़ी देर बाद ही लालू की माता भी उनके पास पाकर बैठ गई। थोड़ी देर तक दोनों चुपचाप रहे । कुछ देर बाद लल्लू की माता बोली-~नल्लू का मुंडन तो अब कर ही देना चाहिए। चार बरस का हो गया है। रामभजन बोले-मुंडन में क्या कुछ ख़र्च न होगा ? पत्नी- खर्च क्यों न होगा। कम-से-कम चार-पाँच रुपए लग जायेंगे। रामभजन-तो चार-पाँच रुपए भावें कहाँ से ? एक-एक पैसे की सो मुश्किल है। पत्नी एक दीर्घ निःश्वास लेकर बोली-सारी उमर तो ऐसे ही बीत जायगी; भी सुख से खाने-पहनने को नसीब न होगा। रामभजन-सो क्या करें ? भाग्य ही खोटे हैं। हमारे देखते- देखते जिनके घर में भूनी भाँग न थी, वे लखपती हो गए ; पर हम . पत्नी लखपती हो गए ! कहीं गड़ा धन मिला होगा। रामभजन-हूँ ! गढ़ा. धन मिलना सहज है ! पत्नी-.तो फिर कैसे लखपती हो गए ? रामभजन-रोजगार में लखपत्ती हो गए । एक बनिए हैं, उनकी दशा हमसे भी खराब थी। न जाने कहाँ से हजार-पाँच सौ रुपए मिल गए । उनसे उन्होंने घी का काम किया। वह काम उनका ऐसा चला, ऐसा चला कि प्राज रामजी की दया से चालीस-पचास हजार रुपए के श्रादमी हैं । अपना-अपना भाग्य है । भाग्य में होता है, तो सौ वहानों से मिल जाता है। पत्नी-तुम भी ऐसा ही कोई रोज़गार क्यों नहीं करते ? नौकरी में तो सदा वही गिने टके मिलेंगे। >