पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/८०

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दिमाता राममजन-रोजगार लिये रुपए भी तो चाहिए, बातों से वो रोजगार होता नहीं। पी-कहीं से उधार ले लो। राममजन-~पागल हो गई हो! हमें कौन उधार देगा ? पक्षी-क्यों, जिनके नौकर हो, वह न देंगे? रामभजन-हाँ, दंगे क्यों नहीं । ऐसे ही ठोइन बड़े इलाकेदार . , । पी-सदा इनाई से ही नहीं मिलता, विश्वास भी तो कोई चीज़ है। जो उन्हें तुम्हारा विश्वास होगा, तो दे ही देंगे। राममनन-विश्वास कैसे हो? श्राजशोरी बातों से विश्वास नहीं होता। पवी-जब कमा लेना, तो दे देना। राममनन-धौर जो वह भी आ गए, तो फिर हमसे क्या ले लगे? परनी-चले क्यों जायेंगे? रामनजनरोजगार है, रोजगार में नका नुकसान लगा ही रहता है। नफा हुया, व तो कोई बात नहीं; पर यदि वाटा हो गया, दो टनका या डूबेगा कि रहेगा? पत्नी-तो ऐसा रोजगार ही काहे को करो, जिसमें वाटा हो? रानमजन--तुम इन बातों को क्या जानो ? व्यर्थ बफबाद लगाए हो। ऐसा होता, तो मनी रोज़गार करके लखपती बन जाते। पत्नी ने पुनः एक दीर्व निवास दोडकर कहा-हमारे भाग में तो यही जिहर भोगने बढ़े हैं। इतना गहना भी तो पास नहीं; वो टमी को वेचकर रोजगार में दगा। राममनन इतना गहना भरा है। दोन्टेढ़ सौ का गहना होगा, सोदा-टेढ़ सौ में कहीं रोजगार होता है ?