संतोष-धन ७३ पत्नी-न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेंगी ? रामभजन-ऊह, होगा भी। हमारा धन तो ये दो लड़के हैं, चिरंजीव रहेंगे, तो बहुतेरा धन हो जायगा । यह कहकर रामभजन लल्लू के सिर पर हाथ फेरने लगे। मनुष्य प्रत्येक दशा में अपने हृदय की सांत्वना का आधार ढूंढ लेता है । अत्यंत कष्ट तथा दुःख में फंसा हुधा मनुष्य भी कोई-न- कोई ऐसी बात ढूंढ लेता है, जिसका प्राश्रय लेकर वह सारे कष्टों को मेल लेता है । मनुप्य का यह स्वभाव है, उसकी प्रकृति है। यदि . ऐसा न होता, तो मनुष्य का जीवित रहना कठिन हो जाता । राम- भजन भी जब अपनी दरिद्रता से संतप्त होकर धैर्य-हीन होने लगते थे, तो अंत को अपने पुत्र-रतों की ओर देखकर ज्वाला-पूर्ण हृदय को शांत कर लेते थे। वह सोचने लगते थे कि यह कष्ट उसी समय तक है, जब तक कि दोनों लड़के जवान होकर चार पैसे पैदा करने के योग्य नहीं हो जाते। जिस दिन उनके दोनों लाल- धनोपार्जन करने योग्य हो जायँगे, उसी दिन उनके सारे कष्टों का अंत हो जायगा । इस समय भी वह यही सोच रहे थे। उनकी पत्नी ने विपाद-पूर्ण स्वर में कहा-हाँ, हमारे तो धन ये ही हैं। रामजी चाहेंगे, तो बड़े होकर चार पैसे कमायेंगे ही। रामभजन-हाँ, यह तो है ही। सबसे अधिक चिंता बुढ़ापे की है। जब हाथ-पैर थक जायेंगे, तब ये ही लड़के कमा कमाकर खिलाएँगे । बस, हमें यही चाहिए, हमें धन -दौलत लेकर क्या करना है ? पेट भर भोजन और तन ढकने को कपड़ा मिले जाय, बस यही बहुत है। उसी समय रामभजन की माता वहाँ श्रा गई। उन्होंने कहा-अरे बेटा, लल्लू का मुंडन अब कर डालना चाहिए । इतना बड़ा हो गया, अपने- -पराए सब टोकते हैं।
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