पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/८३

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संतोष-धन ७५ डरते-डरते लाला नारीलाल से कहा-लाला, तुम्हारे गुलाम का - मुंडन है। 3 लाला हज़ारीलाल-किसका मुंडन, तुम्हारे लड़के का ? रामभजन-हाँ, छोटे लड़के का । "हूँ' कहकर लाला चुप हो गए। थोड़ी देर बाद वोले-तो क्या चाहते हो? रामभजन-कुछ सहारा लगा दीजिए, तो बढ़ी दया हो । लाला हज़ारीलाल-तनख्वाह मिली है, इसी में से क्यों नहीं खर्च करते। रामभजन-अरे लाला, तनख़्वाह तो पेट ही-भर को नहीं होती, मुंडन में खर्च कहाँ से करें ? लाला रुखाई से बोले-तो महागज, इस समय तो हम अधिक कुछ कर नहीं सकते । श्राजकल बाज़ार मंदा है, विक्री-विक्री कुछ. होती नहीं। जरा बाज़ार चेतने दो, तो फिर धूम से मुंढन करना। अभी एक-श्राध महीने और ठहर जाओ। रामभजन-लालाजी, हम तो साल-भर ठहर जायँ पर घर में औरतें नाक में दम किए हुए हैं। आप जानते हैं, स्त्रियों का मामला बड़ा टेढ़ा होता है। लालाजी-औरतों के मारे तो सबके नाक में दम रहता है । उन्हें कुछ मालूम पड़ता है, हुकुम चलाना भर जानती हैं

रामभजन-हाँ, यह तो ठीक है; पर करना ही पड़ता है, विना

किए प्राण वचते हैं? लालाजी-तो महाराज, फिर करो, हम मना थोड़े ही करते है। हमारा सुवीता इस समय नहीं है, साफ़ बात है। रामभजन-अरे लालाजी, धाप राजा-महाराजा लोग हैं, आपको सब सुबीता है। भगवान् की दया से सब कुछ है। . .