चित्रशाला पर टाँग देता ? कुछ नोट तो थे नहीं, जो पंकट लिए जाते । गिन्नी की क्या पहचान ? लाला का उन पर नाम लिखा था? पर, हमने तो भगवान् का खौफ़ खाया । वह घर बड़े वर से भी जबरदस्त है। नौकर तुममें हिम्मत ही नहीं है। ये सब काम हिम्मत से होते हैं। तुम्हारे-जैसे कचपेंदियों में इतनी हिम्मत कहाँ से श्रा सकती है? रामभजन-वर, ऐसा ही सही, भगवान् इसी तरह पार लगा दें। हम इसी में मुखी हैं। नौकर-तो फिर काहे को लाना के प्रागे हाथ पसारते हो? अपनी तनरवाह में जो चाहो करो। राममजन-प्रादमी टसी कहता है, जिस पर कुछ शोर होता है। नौकर-नाला पर तुम्हारा क्या ज़ोर है ? रामभजन -हमारे मालिक हैं, उनका नमक खाते हैं, उन पर ज़ोर न होगा, तो किस पर होगा? नौकर-ज़ोर का मज़ा भी तो मिल गया ! ऐसा टका-सा जवाब मिला कि तबियत हरी हो गई होगी ! अच्छा जोर है ! इसी से तो कहता हूँ कि बाम्हन साठ वरस तक पाँगा रहता है। कहने लगे ज़ोर है, हुँह ! ऐसा जोर होने लगे, तो फिर ये लाला भाई काहे को लख. पती बने बैठे रहे। रामभजन -तो इससे क्या हुआ? अाज इन्कार कर दिया है, तो कभी दे भी देंगे। नौकर-दे चुके ! जब देने का समय श्रावेगा, तब सदर बाजार गंदा हो जायगा, यह याद रखना। राममजन तो सचमुच मंदा है, इसमें नाला ने कुछ म तो कहा नहीं। याज़ार तो
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/८६
दिखावट