पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९१

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संतोप-धन ८३

- माता-कम-से-कम पाँच रुपए तो हों । हेती-व्यवहारियों में बतासफेनी बटेंगी ; नाऊ को कुछ दिया जायगा । रामभजन-भला बतासफेनी क्यावाँटोगी? बाँटो,तो मिठाई बाँटो माता-मिठाई में दस रुपए से कम नहीं लगेंगे। रामभजन-लगेंगे तो लग जायेंगे, क्या किया जाय । यह काम मी तो करना ही है। कल हम तुम्हें दस रुपए दे देंगे। यह सुनते ही माता की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा । उधर पत्नी सोचने लगी-मोहो! कहाँ पाँच का ठिकाना न था, और कहाँ अब दस ख़र्च करेंगे। या तो आज भांग अधिक पी गए हैं या कहीं से रुपए मिल गए हैं । यह सोचते ही पत्नी ने जल्दी-जल्दी भोजन समाप्त किया। इस समय उसके पेट में चूहे कूद रहे थे। वह वास्तविक बात जानने के लिये अत्यंत पातुर हो रही थी। उसने हाथ-वाथ धोकर सास से कहा-अम्माँ, लल्लू को सुला दो। माता समझ गई कि बहू अपने पति के पास जाना चाहती है । अतएव वह वहाँ से हट गई। पत्नी ने पाते ही पहला प्रश्न यह किया-सच बतायो, रुपए कहाँ मिले ? इतना सुनते ही रामभजन का मुखमंडल श्वेत हो गया; परंतु अँधेरा होने के कारण उसकी पती उसकी दशा न देख सकी । राम- -रुपए, कैसे पत्नी-मुझसे तो उड़ो नहीं। ये बढ़-चढ़कर बातें योही मार रहे थे? अाज तो ऐसी बात कर रहे थे, मानों नखपती हो । ऐसी बातें विना रुपए के मुंह से कभी नहीं निकल सकतीं। रामभजन काठ हो गए । सोचने लगे-निस्संदेह मैंने बड़ा गधा- पन किया, जो ऐसी बातें की। यह सोचकर तुरंत बोले-रुपया क्या ठीकरी है, जो मिल जायगा? भजन बोले- रुपए ? .