पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९०

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52 चित्रशाला पचती ; कहीं इधर-उधर कह दिया, तो उलटे लेने के देने पड़ जायेंगे । यह सोचकर बोले- अम्मा, अब तो हमारा जी नौकरी से ऊब गया । अव हमसे नौकरी नहीं होती। रात-दिन बैल की तरह जुते रहो और मिनने को बीस रुपल्ली । माता-बेटा, रोजगार के लिये तो रुपए चाहिए; कहाँ से श्रावेंगे? रामभजन रुपए भी हो ही जायेंगे । जब जी में दट जायगी, तो रुपए होते क्या देर लगेगी। माता-कहाँ से हो जायेंगे? रामभजन-भरे अव इतने दिन से यहाँ काम करते हैं, वो क्या फोई हज़ार-दो-हजार रुपए भी उधार न देगा? सैकड़ों बनिए. महाजनों से जान-पहचान हो गई है। जिससे माँगेंगे, वही दे देगा। उनकी पत्नी बैठी भोजन कर रही थी । उसने जो महाराज को ये लंबी-लंबी बातें सुनीं, तो उसे बड़ा पाश्चर्य हुा । वह सोचने लगी-श्रमी उस दिन तो कह रहे थे कि हमें कौन रूपए देगा। इमारे पास कौन इलाका धरा है । लड़के के मुंडन के लिये मालिक से पाँच रुपए मांगे, वह तक नहीं मिले । पाँच रुपए न होने के कारण मुंढन रुका हुआ है । और श्राज महाराज हजारों की बातें कर रहे है। कहते हैं, रुपया भी हो ही जायगा । यह मामला क्या है ! कहीं आज भाँग तो नहीं पी पाए! उधर पत्नी यह सोच रही थी, इधर माता पुत्र,से बोली-बेटा, सयसे पहले लड़के का मुंडन कर दालो, बढ़ी बदनामी हो रही है। . रामभजन मल्लाकर बोले-बदनामी हो रही है, तो कर डालो। मना कौन करता है? माता डरते-डरते वोली-फर काहे से ढालें, रुपए मी तो हों? राममजन-कितने रुपए चाहिए ? -