पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९३

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संतोष-धन २१ जानाजी-धजी, राम भजो ! ऐसा नहीं हो सकता । वह जरूर खा गया। खैर पुलिस को इत्तिला दे दी गई है, वह मार-मार । कर सब कबुलवा लेगी। यह सुनते ही रामभजन की नीचे की साँस नीचे और ऊपर की ऊपर रह गई । हृदय में सब वृत्तांत जानने की उत्कंठा पैदा हुई । थोड़ी देर में चित्त स्थिर करके लाला से पूछा-लाला, क्या बात है लाला-कल मुसहीलाल-रामसरन का यादमी करेंसी से दो हजार के नोट लाया था। दुकान पर पाकर बोला कि नोट तो कहीं गिर गए। उसका कहना है कि उसने चादर के कोने में बाँध निए थे। दूकान पर चाकर जब नोट देने के लिये चादर देखी, तो गाँठ खुली पाई । अब इपमें दो ही बातें हो सकती हैं या तो किसी ने खोल लिए और या वह खुद राबन कर गया । गिर जाने की बात समझ में नहीं पाती। रामभजन-तो अव क्या होगा? लाला-होगा क्या, उन्होंने उस प्रादमी को पुलिस को दे दिया है। नहाँ पुलीस ने जूता बरसाया, सब कवूल देगा। रामभजन के हृदय में एक धक्का लगा। वह सोचने लगे-बेचारा एक निरपराध मुसीबत में फंसा हुश्रा है, और नोट हमारे पास हैं। रामभजन यह बैठे सोच हो रहे थे कि लाला ने उन्हें एक काम बता दिया। रामभजन वह काम करने के लिये चले, रास्ते में उत्सुकता उत्पन्न हुई कि चलो देखें, मुलहीताल की दुकान पर इस समय क्या हो रहा है । यह सोचकर उधर ही से निकले । देखा, में दो-तीन पुलिस के श्रादमी बैठे हैं। सामने उनका नौकर खड़ा है। सब-इंस्पेक्टर साहब उससे कह रहे हैं-अबे तूने लिए हों, तो ठीक ठीक बता दे। उनकी दूकान