पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९४

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चित्रशाला . नौकर हाथ जोड़कर बोला-सरकार, भगवान् जानते हैं, मैंने नहीं लिए । पाँच-पाँच हजार के नोट लाता रहा हूँ; लेता, तो पाँच हज़ार लेता, दो हजार क्यों लेता? सब-इंस्पेक्टर-अत्रे, यह तू हमें क्या पढ़ाता है ? इंसान की नीयत हमेशा एक-सी नहीं रहती। मुमकिन है, हम वक्त तुझे रुपयों की सन्न ज़रूरत हो, इसलिये तुने ऐसा कर डाला हो नौकर--मालिक, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ । ईश्वर देखने. धाला है। जिसने रुपए लिए हों उसका बंम नास हो जाय, उसके श्रागे-पीछे कोई न रहे। इतना सुनते ही राममजन का कलेजा दहल गया । सब इंस्पेक्टर ने लाला से कहा-हम इसे कोतवाली लिए जाते हैं, वहीं यह कबूलेगा। सीधी तरह न बतावेगा। यह कहकर इंस्पेक्टर ने एक कांस्टेवज से कहा-इसके हथकड़ी लगायो और थाने पर ले चलो। बात-की-यात में उसके हाथों में हथकड़ियाँ पढ़ गई । नौकर लाला के सामने नाक रगड़ने लगा। बोला-काला, मुझे बचायो; मैं जन्म-मर तुम्हारी गुलामी करूंगा। भगवान् जानते हैं, मैंने रुपए नहीं लिए । मेरे छोटे-छोटे बच्चे भूखों मर जायंगे, मेरी बुढ़िया मा यह खबर सुनते ही ग्राण छोड़ देगी। तुम भगवान् हो, तुम्हारे लिये हजार-दो हज़ार कुछ नहीं, व्याह-शादी में इतने की लकड़ियाँ जल जाती हैं। सरकार मेरा जनम न बिगाड़ो। लाला ने उसकी बात पर ध्यान न दिया, मुंह फेर लिया, और कांस्टेबलों से इशारा किया कि ले जायो । कांस्टेबल टसे घसीटने नगे। वह लाला की ओर गिरा पड़ता था और बिलख-बिलखकर रो रहा था। उसी समय एक कांस्टेबल ने उसके गाल पर एक जोर का तमाचा मारा और कहा-साले, जैल मचाता है ? अभी क्या है, जरा कोतवाली चल, देख, यहाँ तेरी क्या गत बनती है ! .