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पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९९

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साध की होली + 1 यह देखकर उन्होंने अपनी चाल तेज़ की और कुछ क्षण में उस स्त्री के निकट पहुंच गए। कुछ अंधेरा हो गया था। वह स्त्री निश्चित भाव से बेधड़क धीरे-धीरे चली जा रही थी। उसका मुख खुला हुआ था। शेन साहब ने देखा स्त्री पोदशी है, अधिक-से-अधिक १७. १८ वर्ष की वयस होगी। रंग गोरा, आँखें बड़ी-बड़ी और मुखमंडल मुग्धकर है । देखते ही लोट-पोट हो गए, हृदय में गुदगुदी उत्पन्न हो गई । पास पहुँचकर खखारा । पोड़शी ने चौंककर उनकी ओर देखा और एक पुरुष को अपने अत्यंत निकट श्राता हुआ देखकर चूंघट काद तेजी के साथ गाँव की ओर बढ़ी। यह देखकर शेख साहब भट उसका . रास्ता रोककर खड़े हो गए और बड़ी रसिकता के साथ बोले-क्यों, भागी क्यों जा रही हो? कुछ कुत्ता हूँ जो तुम्हें काट खाऊँगा। षोड़शी उन्हें राह में खड़ा देखकर सिटपिटाकर खड़ी हो गई। उसका शरीर काँपने लगा। शेन साहब पुनः बोले-हमसे क्या परदा करती हो? तुम्हें शायद यह नहीं मालूम कि हम कौन हैं स्त्री ने इसका भी कुछ उत्तर न दिया। शेख साहब पुनः बोले- हम तुम्हारे इस गाँव के जमींदारं हैं। पोड़शी पुनः मौन रही । शेन साहब उत्तर की प्रतीक्षा करने के पश्चात् बोले-हमारी बात मानोगी, तो चैन करोगी । हम भी तुम्हारी कोई बात नहीं टालेंगे, जो कहोगी सो करेंगे। इस बार षोडशी ने कंपित-स्वर में केवल इतना कहा-राह छोद दो, मुझे जाने दो, देर होती है। शेख साहब बोले-अच्छा जाओ, हमारी बात मानोगी, तो मजे करोगी; नहीं तो पछताभोगी। कल यहीं फिर मिलना। यह कहकर शेन साहब ने रास्ता छोड़ दिया। पोड़शी तेजी के साथ गाँव की ओर चली। शेख साहब आगे बढ़े । थोड़ी दूर पर एक वृद्धा श्रहीरिन कुछ --