साध की होली . शाम के ६ यज चुके हैं। शेग्नपुरे के जमींदार सज्जादहुसेन जंगल की हवा खाने निकले हैं। जमींदार साहब की वयस २५ वर्ष के लग. मग है। देखने में सुंदर है । अपने सौंदर्य पर उनको बदा गर्व है, अभिमान है। उनका यह नित्यकर्म-सा था कि शाम को अकेले निक लते और गाँव की स्त्रियों को, जो शौच इत्यादि से निवृत्त होने के लिये जंगल अथवा खेसों में पाया करती थीं, छिपकर धूरा करते । जो स्त्री इन्हें पसंद पा जाती थी, उसे छेदते थे और फुस- लाने की चेष्टा करते थे। जो सीधी तरह टनको घोर प्राकर्पित न होती थी उसे माम, दाम, दंड, भेद से वश में लाने की चेष्टा करते थे। उनके इस वृणित कार्य से गाँव के निवासी अश्यंत दुःखी थे, पर किसी का इतना साहस न होता था कि उनके इस कार्य तुले तौर पर करे । गाँव के दो-चार श्रादमी, जिन्हें यह बात किसी प्रकार सहन न हो सकी, गाँव छोड़कर चले गए थे। श्राज भी नियमानुसार शेन्द्र साहब अपने दैनिक दौरे के लिये निकले थे। उनके भय से बहुत-सी स्त्रियाँ मुंद बाँधकर निकलती यों और सब एकसाथ ही गाँव की ओर लौट जाती थीं। शेन साहब इधर-उधर घूमते-घामते गाँव के बाहर एक पोखर पर पहुँचे । उन्होंने थोड़ी दूर पर १०-१२ स्त्रियों को गाँव की श्रोर जाते देखा । यह देखकर वह कुछ क्षण के लिये ठिठक गए और स्त्रियों की पोर स्थिर दृष्टि से देखते रहे । तत्पश्चात् अपने-ही-श्राप मुसकिराकर धीरे-धीरे आगे बढ़े। हठात् उन्होंने देखा कि एक स्त्री उन स्त्रियों से बहुत पीछे छूट गई है। का विरोध
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