सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
९६
चोखे चौपदे

काम करती रही करोड़ों मे।
जब फबी आनबान साथ फबी॥
और की कोर ही रही दबती।
आँख तेरी कभी न कोर दबी॥

काजलों या कालिखों की छूत मे।
कम अछूतापन नही तेरा सना॥
धूल लेकर के अछूते पॉव की।
ऐ अछूती ऑख तू सुरमा बना॥

वह लुभाता है भला किस को नही।
थी भलाई भी उसी मे भर सकी॥
भूल भोलापन गई अपना अगर।
भूल भोली आँख ने तो कम न की॥

क्या करेगी दिखा नुकीलापन।
क्या हुआ जो रही रसों बोरी॥
सब भली करनियों करीनों से।
आँख की कोर जो रही कोरी॥