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अन्योक्ति
क्या कहें और के सभी दुखड़े।
खेल होते है और के लेखे॥
फूट जो है उसे बहुत भाती।
आँख तो आप फूट कर देखे॥
देख सीधे, सामने हो, फिर न जा।
मान जा, बेढंग चालें तू न चल॥
सोचले सब दिन किसी की कब चली।
एक तिल पर आँख मत इतना मचल॥
हम कहें कैसे कि उन में सूझ है।
जब न पर-दुख-आँसुओं में वे बहे॥
क्या उजाले से भरे हो कर किया।
आँख के तिल जब अँधेरे मे रहे॥
हो गईं सब बरौनियाँ उजली।
जोत का तार बेतरह टूटा॥
देख ऊबी न तू छटा बाँकी।
आँख तेरा न बॉकपन छूटा॥