पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१२२

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अन्योक्ति

जो बुरे आठो पहर घेरे रहे।
तो भली ऑखें न क्यों पीछे हटें॥
मुँह बुरा है जो भले तुम को लगे।
बाल बेसुलझे हुए, उलझी लटें॥

पड़ गई है बान जटने की जिन्हें।
वे भला कैसे न भोले को जटें॥
मुँह किसी ने सौप क्यों तुम को दिया।
साँप जैसे बाल साँपिनि सी लटें॥

मुँह तुम्हें जो रुचा चटोरापन।
जीव कैसे न तब भला कटते॥
तुम रहे जब हराम का खाते।
तब रहे राम राम क्या रटते॥

मुँह कहाँ तब रहा ढँगीलापन।
जब कि बेढंग तुम रहे खुलते॥
जब गया आब गालियाँ बक बक।
तब रहे क्या गुलाब से धुलते॥