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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१४२

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अन्योक्ति


कठ की खींच तान में पड़ कर।
हो गया बन्द बोल का भी दम॥
तग होता रहा बहुत तबला।
दग होता रहा मृदग न कम॥

हथेली

क्या कहे हम और, हम ने आज ही।
आँख से मेहदी लगाई देख ली॥
जब ललाई और लाली के लिये।
तब हथेलो की ललाई देख ली॥

कर रही है लालसायें प्यार की।
क्या लुनाई के लिये अठखेलियाँ॥
या किसी दिल के लहू से लाल बन।
हो गई हैं लाल लाल हथेलियाॅ॥