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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१४१

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चोखे चौपदे

तब भला क्या उमड़ घुमड़ कर के।
मेघ तू है बरस बरस जाता॥
एक प्यासे हुए पपीहे का।
कंठ ही सीच जब नही पाता॥

गाना गला कंठ

हो सके हम सुखी नही अब भी।
आप का मेघराज आना सुन॥
ऑख से आज ढल पड़ा आँसू।
मल गया दिल मलार गाना सुन॥

बेसुरी तब बनी न क्यों बसी।
बीन का तार तब न क्यों टूटा॥
तब रही क्या सरगियाॅ बजती।
आज सस्ते अगर गला छूटा॥

बोल का मोल जान कर के भी।
कठ के साथ क्यों नही तुलती॥
जब नही ठीक ठीक बोल सकी।
ढोल की पोल क्यों न तब खुलती॥