पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१४४

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अन्योक्ति

फेर मे क्यों लाल रंगों के पड़े।
क्यों अँगूठी पैन्ह ले हीरे जड़ी॥
है बड़ाई के लिये यह कम नहीं।
उँगलियों मे है बड़ी, उँगली बड़ी॥

कब न करतूत कर सकी छोटी।
वह दिखाते कला कभी न थकी॥
हो बड़ी और क्यों न हो मोटी।
कौन उँगली उठा पहाड़ सकी॥

क्यों न हो लाल बारहा उँगली।
लाल होगी कभी नही गोंटी॥
मिल सके किस तरह बड़ाई तब।
जब छुटाई मिले हुई छोटी॥

बन सकी वह नही बड़ी उँगली।
भाग का नीक भी नहीं चमका॥
मूठियां क्यों न वार दें हीरे।
क्यों न देवे अँगूठियाँ दमका॥