पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१४६

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अन्योक्ति

चौकते मरजादवाले है नही।
देख उज्जबक कठ में कठा पड़ा॥
क्यों न छल्ले पैन्ह ले कानी कई।
कौन उँगली कान करती है खड़ा॥

जो किसी को खली, भली न लगी।
चाहिये चाल वह न जाय चली॥
जो गई तो गई किसो मुँह मे।
किस लिये आँख में गई उँगली॥

सोच उँगली तू ढले तो क्यों ढले।
जो बुरी रुचि में ढला वह जाय ढल॥
हैं दमकते तो दमकने दे उन्हें।
मोतियों से दाँत में मिस्सी न मल॥

डाल कर सुरमा भलाई की गई।
कब नहीं यह आँख दुखवाली रही॥
सोच उँगली तू न कर लाली गॅवा।
क्या हुआ कुछ काल जो काली रही॥