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चोखे चौपदे

जो रही चूर रगरलियों में।
जो सदा थी उमग में माती॥
आज भरपूर चोट खा खा कर।
हो गई चूर चूर वह छाती॥

पेट

कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते।
हो सके कुछ न तो बड़े ही कर॥
दुख कड़ाई किसे नही देती।
देख लो पेट तुम कड़े हो कर॥

तू न करता अगर सितम होता।
तो बड़े चैन से बसर होती॥
तो न हम बैठते पकड़ कर सर।
पेट तुझ मे न जो कसर होती॥

हो गरम जब हमें सताता है।
हो नरम जब रहा भरम खोता॥
पेट! तो दे बता मरम इस का।
क्यों रहा तू नरम गरम होता॥