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चोखे चौपदे

खोलते ही खोलने वाले रहे।
भेद उस के पर न खोले से खुले॥
तोल करके मान मन कितना गया।
पर न तोले आँख तेरे तिल तुले॥

है न गहरी दुई बहुत लाली।
है न उस में मजीठ बूँद चुई॥
खीझ से बूझ का लहू करके।
आँख तू है लहूलुहान हुई॥

हम बतायें तो बतायें किस तरह।
तू न जाने कौन मद में है सना॥
कान कितने झूमते हैं आज भी।
देख तेरे झूमकों का झूमना॥

तब निकलता न किस लिये सूरज।
जब ललाई लिये फटी पौ थी॥
कान पाता न क्यों तरौना तब।
जब ललकती छिदी हुई लौ थी॥