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काम के कलाम

होठ औ दॉत मिस समय पा कर।
मुँह लगे फल भले बुरे पाने॥
है अगर फल कही इनारू का।
तो कहीं है अनार के दाने॥

बोल बोले अमेल, फूल झड़े।
चाँदनी को किये हँसी से सर॥
लग गये चार चॉद जिस मुँह को।
हम उसे चाँद सा कहें क्यों कर॥

एक तिल फूल एक दुपहरिया।
दो कमल और दो गुलाब बड़े॥
भूल है फूल मिल गये इतने।
फूल मुँह से किसी अगर न झड़े॥

बोलने आदि के बड़े आले।
सब निराले कमाल तुम जैसे॥
मिल किसी काल में उसे न सके।
मुँह तुम्हें हम कमल कहें कैसे॥