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गागर में सागर
हो भले, हो सब तरह के सुख हमें।
एक भी साँसत न दुख में पड़ सहें ॥
चाह है, लाली बनी मुँह की रहे।
लाल तलकों से लगी आँखे रहें ॥
मा की ममता
भूल कर देह गेह की सब सुध।
मा रही नेह मे सदा माती ॥
जान को वार कर जिलाती है।
पालती है पिला पिला छाती ॥
देख कर लाल को किलक हँसने।
लख ललक बार बार ललचाई ॥
कौन मा भर गई न प्यारों से।
कौन छाती भला न भर आई ॥
मा कलेजे में बही जैसी कि वह।
प्यार की धारा कहाँ वैसी बही ॥
कौन हित-माती हमें ऐसी मिली।
दूध से किस की भरी छाती रही ॥