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चोखे चौपदे

हैं उसी मे भाव के फूले कमल।
जो सदा सिर पर सुजन सुर के चढ़े॥
हैं उपज लहरें उसी में सोहती।
सोत रस के मन सरोवर से कढ़े॥

हैं उसी के खेल जग के खेल सब।
लोक-कौतुक गोद में उस की पला॥
हैं उसी की कल सकल तन को कलें।
सब कलायें एक मन की है कला॥

मोल वाली मे बड़ा अनमोल है।
सामने उस के सकल धन धूल है॥
माल है वह सब तरह के माल का।
सब जगत के मूल का मन मूल है॥

क्या कही भूत का बसेरा है?
भूल है भय अगर कैंपाये तन॥
तो चढ़ेगा न भूत सिर पर क्यों।
भूत बन जाय जो किसी का मन॥