सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१८२
चोखे चौपदे

एक को पूछता नही कोई।
एक आधार प्रेमधन का है॥
एक मन है न एक मन का भी।
एक मन एक लाख मन का है॥

फेन से भी है बहुत हलका वही।
मेरु से भारी वही है बन सका॥
मान किस मे है कि मन को तौल ले।
जब सका तब तौल मन को मन सका॥

मन न हो तो जहान है ही क्या।
मन रहे है जहान का नाता॥
मन सधे क्या सधा नहीं साधे।
मन बँधे है जहान बँध जाता॥

डूब कर के रगतों में प्यार को।
साथ ही दो फूल अलबेले खिले॥
मेल कर अनमोल दो तन बन गये।
मोल मन का बढ़ गया दो मन मिले॥