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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१९२

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निराले नगीने

मन उबारे से उबरते हैं सभी।
कौन तारे से नही मन के तरा॥
मन सुधारे ही सुधरता है जगत।
मन उधारे ही उधरती है धरा॥

बार घर के बार जो हैं हो रहे।
तो न सूबे के लिये ऊबे रहें॥
क्यों पड़े तो मनसबों के मोह में।
पास मन के जो न मनसूबे रहें॥

जान है जानकार लोगों की।
और सिरमौर माहिरों का है॥
जौहरों का सदा रहा जौहर।
जौहरी मन जवाहिरों का है॥

एक मन है भरा हुआ मल से।
एक मन है बहुत धुला उजला॥
एक मन को कमाल है सिड़ में।
एक मन है कमाल का पुतला॥