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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२०१

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चोखे चौपदे

बादलों मे हे अनूठी रगते।
इन्द्रधनु मे है निराली धारियां॥
है नगीना कौन सा तारा नही।
है कहा मन की न मीनाकारियां॥

चाह बिजली चमक अनूठी है।
श्याम रँग मे रॅगा हुआ तन है॥
है बरसता सुहावना रस वह।
मन बड़ा ही लुभावना घन है॥

है वही सुन्दर सराहे मन जिसे।
हैं जगत में सब तरह की सूरतें॥
मन अगर ले मान मन दे मान तो।
देवता है मन्दिरों की मूरतें॥

है अगर मानता नहीं मन तो।
कौन नाना व कौन मामा है॥
मन कहे और मान मन ले तो।
बाप है बाप और मा, मा, है॥