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निराले नगीले
चाहते तंग है बहुत होती।
हैं बुढ़ापा तरंग ही तन मे॥
रग ही है न ढग हो है वह।
अब न है वह उमग ही मन मे॥
कुछ कलेजे
मोम-माखन सा मुलायम है वही।
प्यार में पाया उसी को सरगरम॥
है उसी मे सब तरह की नरमियॉ।
फल से भी मा-कलेजा है नरम॥
प्यार को आँच पा पिघलने में।
मा-कलेजा न मोम से कम है॥
वह निराली मुलायमीयत पा।
फेन से, फूल से, मोलायम है॥
एक मा को छोड़ ममता मोह में।
है किसी का मन न उस के माप का॥
सब हितों से उर उसी का है भरा।
प्यार से पुर है कलेजा बाप का॥