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निराले नगोने
हैं खिले मुँह सभी उन्ही जैसे।
है उन्हीं के समान नयन नवल॥
हाथ ऐसे सुहावने न लगे।
कम लगे है लुभावने न कमल॥
जब सदा जोड़ते रहे नाता।
तब उसे तोड़ते रहे कैसे॥
क्या कमल के लिये ललाये तब।
हाथ जब आप हैं कमल जैसे॥
हाथ और फूल
देखते उस की फबन जो आँख पा।
तो कभी हित से नही मुँह मोड़ते॥
धूल मे तुम हाथ क्यों मिलते नही।
भूल है जो फूल को हो तोड़ते॥
जो खले, दुख किसी तरह का दे।
कब किसे ढंग वह सुहाता है॥
क्यों न ले तोड़ फूल फूले वह।
हाथ को फूलना सताता है॥