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चोखे चौपदे
रह गया जो धन नहीं तो मत रहो।
है हमारी नेकियों को हर रही॥
क्या कहें हम तँगदिल तो थे नहीं।
तंग तगी हाथ की है कर रही॥
पा सका एक भी नही मोती।
पड़ गया सिंधु आग के छल में॥
तो जले भाग को न क्यों कोसें।
जाय जल हाथ जो गये जल में॥
मान मन सब मनचलापन मरतबे।
मन मरे कैसे भला खोता नहीं॥
क्यों न वह फँसता दुखों के दाम में।
दाम जिस के हाथ में होता नहीं॥
बढ़ गई बेबसी बुढ़ापा की।
चल बसा चैन, सुख हुआ सपना॥
दूसरे हाथ में रहें कैसे।
हाथ मे हाथ है नहीं अपना॥