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चोखे चौपदे
आज सीटी पटाक बन्द हुई।
वे सटकते रहे बहुत वैसे॥
बात ही जब कि रह नही पाई।
बात मुँह से निकल सके कैसे॥
कब भला लोहा उन्हो ने है लिया।
मारतों के सामने वे अड़ चुके॥
दाब लेंगे दूब दाँतों के तले।
काम है मुँहदूबरों से पड़ चुके॥
किस तरह छूटते न तब छक्के।
जब कि तू छूट में रहा माता॥
जब कि मुँहतोड़ पा जवाब गये।
तब भला क्यों न टूट मुँह जाता॥
दूसरों से बैठती जिस की नही।
किस लिये वह प्यार जतलाता नही॥
मुँह खुला जिसका न औरों के लिये।
दाँत उस का बैठ क्यों जाता नहीं॥