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जाति के कलंक

नामियों ने नाम पाकर क्या किया।
किस लिये बदनामियों से हम डरें॥
मुँह भले ही लाल हो जावे, मगर।
क्यों न अपनी लाल, आँखें हम करें॥

वे बने बाल फैशनों वाले।
जो मुड़े भाल पर लटकते हैं॥
देखता है कि आँख वालों की।
आँख में बेतरह खटकते हैं॥

तब भला सादगी बचे कैसे।
जाय सँजीदगी न कैसे टल॥
जब लगायेंगे दाँत में मिस्सी।
जब घुलायेंगे आँख में काजल॥

है बहुत पूच और छोटी बात।
जो चले मर्द औरतों की चाल॥
कब करेंगे पसंद अच्छे लोग।
काढना माँग औ बनाना बाल॥