पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२४५

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हमारे मालदार

क्या कह हाल मालदारों का।
माल से है छिनाल घर भरता॥
काढ़ते दान के लिये कौड़ो।
है कलेजा धुकड़ पुकड़ करता।।

किस तरह तब मान की मोहरें मिले।
उलहती रुचि बेलि रहती लहलही।।
देख कौड़ी दूर की लाते हमें।
जब मची हलचल कलेजे में रही।।

निराले लोग

एक डौंडी है बजाती नीद की।
दूसरे मुँहचोर से ही हैं हिले॥
नाक तो है बोलती ही, पर हमें।
नाक में भी बोलने वाले मिले॥