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चोखे चौपदे
चाहतें आज भी सतांती हैं।
भेद पाया न झूठ औ सच का॥
सन हुआ बाल तन हुआ दुबला।
गिर गये दॉत, गाल भी पचका॥
गल गया तन, झूलने चमड़े लगे।
सामने है मौत के दिन भी खड़े॥
पर न छूटी बान हँसने की अभी।
दाँत बिख के सब नहीं अब तक झड़े॥
भाग ने धोखा दिया ही था हमें।
दैव ने भी साथ मेरे की ठगी॥
आज तक हम बन न अलबेले सके।
कंठ से अब तक न अलबेली लगी॥
पेट के पचड़े
सब बुराई बेइमानी है रवा।
भूख देती है बना बेताब जब।।
पापियों को पाप प्यारा है नहीं।
है कराता पेट पापी पाप सब॥