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तरह तरह की बातें

सब खटाई ही हमें खट्टी मिली।
और मीठी ही मिली सब साढ़ियॉ॥
देख लम्बा डील लम्बी बात सुन।
क्यों खटक जाती न लम्बी दाढ़ियॉ।।

तरह तरह की बातें
मोह

और भी दॉत गड़ गये रस में।
क्या हुआ दाँत जो सभी टूटा॥
ताकने की तनिक न ताब रही।
ताकना झाँकना नही छूटा॥

अब हम दे सके न भूखों को।
दीन को दान के लिये न चुना॥
है बड़ा दुख किसी दुखी का दुख।
कान देकर किसी समय न सुना।।