पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४
चोखे चौपदे

क्यों ललकती रहे न माँ-आँखें।
दल उसे लाल फूल का कह कह ॥
लाल है, है गुलाल की पुतली।
लाल की लाल लाल एड़ी यह ॥

प्यार से है प्यार की बाते भरी।
मा कलेजे के कमल जैसा खिले ॥
पाँव पॉव ठुमक ठुमुक घर मे चले।
लाल को हैं पाँव चन्दन के मिले ॥



केसर की क्यारी
अनूठी बातें


जो बहुत बनते हैं उन के पास से।
चाह होती है कि कब कैसे टलें ॥
ओ मिले जी खोल कर, उन के यहाँ ।
चाहता है जो कि सिर के बल चले ॥