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पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२७३

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चोखे चौपदे

हम फँसे ही रहे भुलावों में।
तुम भुलाये गये नही भूले।
नित रहा फूलता हमारा जी।
तुम रहे फूल की तरह फूले॥

है यही चाह तुम हमे चाहो।
देस-हित में ललक लगे हम हों॥
रंग हम पर चढ़ा तुमारा हो।
लोक-हित-रंग में रँगे हम हों।।

तुम उलझते रहो नही हम से।
उलझनों में उलझ न हम उलझें॥
तुम रहो बार बार सुलझाते।
हम सदा ही सुलझ सुलझ सुलझें।।

भेद तुम को न चाहिये रखना।
क्यों हमें भेद हो न बतलाते॥
हो कहाँ पर नही दिखाते तुम।
क्यों तूूमें देख हम नहीं पाते।।