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चोखे चौपदे

पुल सकेगा न बँध सितारों पर।
कुल धरा धूल ढुल नहीं सकती॥
धुल सकेंगे न चाँद के धब्बे।
बाँझ की कोख खुल नहीं सकती॥

जब नही उस ने बुझाई भूख तो।
मोतियों से क्या भरी थाली रही॥
जो न उस के फल किसी को मिल सके।
नो फलों से क्या लदी डाली रही॥

जोत कैसे मलीन होवेगी।
क्या हुआ भूमि पर अगर फैली॥
धूल से भर कभी न धूप सकी।
हो सकी चाँदनी नही मेली॥

आम में आ सका न कड़वापन।
है मिठाई न नीम मे आती॥
छोड़ ऊंचा सका न ऊंचापन।
नीच की नीचता नही जाती॥