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केसर की क्यारी

तब कहें कैसे किसी की चाहते।
रगतों में यार की है ढालती॥
जब कि मुखड़े की लुनाई आप की।
आँख में है लोन राई डालती॥

लूट ले प्यार को लपेटों से।
दे निबौरी दिखा दिखा दाखें॥
पट, पटा कर, न पट सकी जिस से।
क्यों गई पटपटा न वे ऑखे॥

है पहेली अजीब पेचीला।
हैं खिली बेलि हैं पकी दाखे॥
अधकढ़ी बात अधगिरी पलकें।
अधखुले होंठ अधखुली आँखें॥

प्यार उन से भला न क्यों बढ़ता।
हो सके पास से न जो न्यारे॥
वे उतारे न चित्त से उतरे।
हिल सके जिन से आँख के तारे॥