सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४५
केसर की क्यारी

बात लगतो लुभावनी कह सुन।
बन दुखी, हो निहाल, दुख सुख से॥
दिल हिले, आँख से गिरे मोती।
दिल खिले, फूल झड़ पड़े मुख से॥

चाह कर के हैं बढ़ाते चाह वें।
खिल रहे है औ खिला है वे रहे॥
मिल रहे है औ रहे हैं वे मिला।
दे रहे दिल और दिल हैं ले रहे॥

क्यों पियेगा ललक चकोर नहीं।
जायगी चद की कला जो मिल॥
फूल खिल क्यों लुभा न दिल लेगा।
चोर दिल का न क्यों चुरा ले दिल॥

लोचनों को ललक हुई दूनी।
वह बिना मोल का बना चेरा॥
देख कर लोच लोच वाले का।
रह गया दिल ललच ललच मेरा।