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चोखे चौपदे

बाप मा के अडाल कानों को।
बूॅद मिलती न तो अमी घोली॥
बोल अनमोल रस लपेटे जो।
बोलती बेटियाँ न मुॅहबोली॥


नोक झोंक

जा रही है सूखती सुख क्यारिया।
जो रही न्यारे रसों से सिंच गई॥
खिंच गये तुम भी इसी का रंज है।
खिच गई भौहें बला से खिच गई॥

सॉच को ऑच है नही लगती।
हम करेंगे कभी नहीं सौहे॥
चिढ़ गये तो चिढ़ रहे डर क्या।
चढ़ गई तो चढ़ी रहें भौहें॥

जाय जिस से कुचल कभी कोई।
चाल ऐसी भले न चलते है॥
आप तो बात ही बदलते थे॥
आँख अब किस लिये बदलते हैं॥