पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४९
केसर की क्यारी

लूट लो, पीस दो, मसल डालो।
पर सितम मौत का बसेरा है॥
देख अंधेर, यह कहेंगे हम।
आँख पर छा गया अँधेरा है॥

जब कि धन भर गया बहुत उस मे।
तब मुरौअत कहाँ ठहर पाती॥
जब उलट कर न आप देख सके।
ऑख कैसे न तब उलट जाती॥

छुट कैसे हाथ से उस के सकें।
जो किसी को हाथ में नट कर करे॥
किस तरह उस से बचावे ऑख हम।
जो हमारी आँख ही मे घर करे॥

देखना हो कमाल रखता है।
प्यार का रग कब जमा वैसे॥
आँख जिस पर ठहर नहीं पाती।
ऑख में वह ठहर सके कैसे॥