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चोखे चौपदे

भेद कितने बिन खुले ही रह गये।
आज तक भी आप ने खोले नही॥
आप का मुॅह ताकते हो रह गये।
आप तो मुॅह भर कभी बोले नहीं॥

किस तरह से दूसरे मीठे बने।
और हम कैसे बने तीते रहे॥
आप मुॅह से बोल तक सकते नहीं।
आप का मुॅह देख हम जीते रहे॥

हैं हमी ऐसे कि जिस को हर घड़ी।
निज सगों का ही बना खटका रहा॥
लख लट्ठरे बाल को जी लट गया।
लट लटकती देख मुँह लटका रहा॥

आँख से क्या निकल पड़े आँसू।
मैल जी का सहल नहीं धुलना॥
आप मुँह देख जीभ ले ही लें।
है बहुत ही मुहाल मुँह खुलना॥