सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५५
केसर की क्यारी

बढ़ गये पर बुरे बखेड़ों के।
बैर का पाँव गाड़ना देखा॥
हो गये पर बिगाड़ बिगड़े का।
मुँह बिगड़ना बिगाड़ना देखा॥

वह उतर कर चढ़ा रहा चित पर।
रंग लाया पसीज पड़ कर भी॥
बन गई बात बिन बनाये ही।
रंग मुँह का बना बिगड़ कर भी॥

कारनामा वह बहुत आला रहा।
आप की करतूत है भोंड़ी बड़ी॥
मुँह दिया था दैव ने ही तो बना।
आप को क्या मुँह बनाने की पड़ी॥

क्यों न सब दिन मुँह चुराते वे रहें।
चोर को देती चिन्हा हैं चोरियाँ॥
हैं बड़ी कमजोरियाँ उन में भरी।
देख लीं मुँहजोर की मुँहजोरियाँ॥