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अनमोल हीरे

भेख सच्चा दिखा पड़ा न हमे।
देख पाये जहाँ तहाँ भेखी॥
फूल कब पा सके किसी से हम।
नाक फूली हुई बहुत देखी॥

वे सभी क्यारियां निराली है।
बेलियां है जहा अजीब खिली॥
कब सकी बोल बोलियाँ न्यारी।
बोलती नाक कम हमे न मिली॥

जिस जगह पर लगें भले लगने।
चाहिये हम वहीं उमग अटकें॥
है कहीं पर अगर लटक जाना।
तो लटें गाल पर न क्यों लटके॥

लोग कैसे उलझ सकेंगे तब।
जब हमारी निगाह हो सुलझी॥
बात होते हुए उझलने की।
लट कभी गाल से नहीं उलझी॥