पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/८५

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अनमोल हीरे

खोजने ले भले नही मिलते।
पर बुरों के सुने कहां न गिले॥
मिल गये बार, बार बू वाले।
मुँह मँहकते हमें कहीं न मिले॥

लत बुरी छूटती नहीं छोड़े।
क्यों न दुख के पड़े रहे पाले
पान का चाबना कहाँ छूटा।
मुँह छिले और पड़ गये छाले॥

जो उन्हें गुन का सहारा मिल सके।
बात तो कब गढ़ नहीं लेते गुनी॥
दख तो पाई नहीं पर बारहा।
बान 'बूढ़े' मुँह मुंहासे' की सुनी॥

दुख मिले चाहे किसी को सुख मिले।
है सभी पाता सदा अपना किया॥
आप ही तो वह अँधेरे मे पड़ा।
जो किसी मुँह ने बुझा दीया दिया॥