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अनमोल हीरे


पोसते लोग हैं निबल को ही।
गो सबल बार बार खलते हे॥
जब गये फूल हो गये मसले।
सग को पाँव कब मसलते हैं॥

नीच से नीच क्यों न हो कोई।
है न ऊँचे टहल-समय टलते॥
पॉव जब दुख रहे हमारे हो।
हाथ तब क्या उन्हे नही मलते॥

ऐठ मे डूब जो बहुत बँहका।
क्यों न उस पर भला बिपद पड़ती॥
जब गई फूल औ चली इतरा।
किस लिये तब न पखड़ी झड़ती॥